किसानों के दर्द की कहानी कविता में..' ओ मेघा इस साल बरस जा रे ' | kisan ke dard ki kahani kavita main, O.. MEGHA IS SAL BARASH JA RE...। नंदकिशोर पटेल "नन्दन" ............ on google | in india | hindi poem
ओ मेघा इस साल बरस जा रे...ओ मेघा इस साल बरस जा रे...||
अब तो अम्बर के शिखरों से जमीं पर आ रे
तेरी उम्मीदों में किसानों को फाँसी लगती है
आज धरा पर आ, इन मौतों को रुकवा रे...
ओ मेघा इस साल बरस जा रे...ओ मेघा इस साल बरस जा रे...||1||
तेरे न आने से किसानों पर कितनी विपदायें आन पड़ी हैं...
देख जरा उनके पैरों को...कर्ज की जंजीरें बहुत बड़ी हैं
वारिश की उम्मीद लगाएं वो एक वक़्त की रोटी खाये खड़ा रे...
ओ मेघा इस साल बरस जा रे...ओ मेघा इस साल बरस जा रे...||2||
सूखे खेतों में बैल भला हल कैसे खींचेंगे..?
लहू बहा कर अपने जिश्म का...
कृषक खेतों को कैसे सीचेंगें,
अब उम्मीदें टूट रहीं हैं
तेरे आने की उम्मीदों में मेरी साँसे छूट रहीं हैं,
उम्मीदों को ताकत दे..साँसों को साँसे दे जा रे...
ओ मेघा इस साल बरस जा रे...ओ मेघा इस साल बरस जा रे...||3||
जब उसने देखा आसमान में चहरे पर घोर उदासी छाई है,
कई रोज़ हुए हैं उसने रोटी तक न खाई है,
उनकी खुशियों पर घोर निराशा के काले बादल छाये हैं...
न जाने कितने रस्सी पर झूले, तेरे पास शिकायत लेकर आये हैं
खूंटे पर हल, आँगन में बैल तुम्हारी राहें देख रखा है
इन बेचारों पे अबकी बार तरस खा रे...
नंदकिशोर पटेल "नन्दन"
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