व्यंग - सभ्यता और आज-कल के रिश्ते | माँ-बाप और बेटी | नंदकिशोर पटेल (नन्दन) | vyang - sabhyata or aaj-kal ke rishte | maa-baap or beti | By- Nandkishor patel (NANDAN)
व्यंग - सभ्यता और आज-कल के रिश्ते | नंदकिशोर पटेल ( नन्दन )
1 - माँ-बाप और बेटी
आज के समय में रिश्ते और समाज के बीच बहुत ही खींचा तानी चलती है ऐसे में हमे चाहिए की हम अपने रिश्तो को हर तरह से मजबूत बनाये और समझने का प्रयास करें न की अपनों पर प्रतिघात या उन्हें तोड़ने का सोचें।
आज हर माँ-बाप अपनी बेटी को लेकर चिंतित हैं, उनके मन में हर पल एक डर रहता है कही कुछ हो न जाये, हमारी बेटी के साथ कोई कुछ गलत न कर दे ?
बेटी किसी के साथ गलत तो नही कर रही? कही गलत रास्ते पर तो नही जा रही? इज्ज़त से? बगैरा- बगैरा ।
ऐसे बहुत सवाल होते हैं।
शायद सही है! आज समय ही ऐसा है लेकिन ऐसे में कई बार माँ-बाप का ज्यादा शक करना भी बेटी को अंदर ही अंदर घुटन देने लगता है, जब बो कुछ गलत नही करती और उसे बार बार ताने दिए जाने लगते है और फिर वो कई बार इसे सहन नहीं कर पाती और मौत को गले लगा लेती है, और फिर ये पूरी जिंदगी पक्षताने को हो जाता है।
इसलिये हर माँ-बाप को चाहिए की वो अपनी बेटी को समझे और उसे समझते रहें की बेटी ये सही है ये गलत है। क्योंकि ऐसे में उसे हमेशा ये भरोसा रहता है की उसके माँ-बाप उसके साथ हैं।
लेकिन कई लड़कियां भी इसका गलत फायदा उठाती, वो अपने परिवार को धोका देने लगती हैं और गलत करने लगती हैं और फिर उसके लिए उनके माँ-बाप को सर्मिंदा होना पड़ता है और आज कल ऐसा ज्यादा देखने मै आया है और फिर इसी बजह से सभी बेटियों पर पाबंदियां लगने लगती हैं और सही भी है क्योकि कहते न की "तालाब की एक मछली पुरे तालाब को गन्दा कर देती है" बस इसी बजह से हर माँ-बाप बेटियों पर पाबंदी लगाने लगते है क्योंकि कोई माता-पिता नहीं चाहेंगे की उनकी बेटी पर कोई ऊँगली उठाए और उसकी बजह से कोई उनकी इज्जत पर सवाल खड़े हों।
हमारी भारतीय सभ्यता में और हमारे भारत के सभी धर्मों के धार्मिक गंथो (भगवत गीता, उपनिषद, रामायण, वेद-पुराणों, क़ुरान, बाईबिल, त्रिपिटक, अंगग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब आदि) में भी नारी को विशेष स्थान प्राप्त है और घर परिवार की इज्ज़त कहा गया है, तो ऐसे में बेटियों के भी कुछ फ़र्ज हैं, उन्हें हमेशा अपनी मर्यादा बनाये रहना चाहिए।
हर माता-पिता अपनी बेटी से इतना ही चाहते है की वो कभी भी उनका सिर नीचा न करे और पुरे जीवन की परवरिश के बदले में ये कुछ भी नहीं है, और अगर जब कोई बेटी जाने अनजाने या किसी और बजह से या अपनी इच्छा पूर्ती के लिए कोई ऐसा कदम उठती हैं जिससे समाज उनके माता पिता पर और उनकी परवरिश पर उंगली उठता है उस समय जो पीड़ा उन्हें होती है वह हमारे सारे जीवन के दुःख से भी कई अधिक होती है।
अतः हर बेटी को चाहिए की वह अपनी मर्यादा और भारतीय सभ्यता को बनाएं रहे। क्योंकि हम भारतीय सभ्यता के साथ भी हम वह सब कर सकते हैं जो हम उसे खोकर कर रहे हैं। हाँ मैं मानता हूँ की यह बेटियों को उनपर पाबंदी या उनकी इच्छा को दबाने जैसा लगता है, किन्तु यही सही है और यही महती आवश्यकता भी......
हर माता-पिता अपनी बेटी से इतना ही चाहते है की वो कभी भी उनका सिर नीचा न करे और पुरे जीवन की परवरिश के बदले में ये कुछ भी नहीं है, और अगर जब कोई बेटी जाने अनजाने या किसी और बजह से या अपनी इच्छा पूर्ती के लिए कोई ऐसा कदम उठती हैं जिससे समाज उनके माता पिता पर और उनकी परवरिश पर उंगली उठता है उस समय जो पीड़ा उन्हें होती है वह हमारे सारे जीवन के दुःख से भी कई अधिक होती है।
अतः हर बेटी को चाहिए की वह अपनी मर्यादा और भारतीय सभ्यता को बनाएं रहे। क्योंकि हम भारतीय सभ्यता के साथ भी हम वह सब कर सकते हैं जो हम उसे खोकर कर रहे हैं। हाँ मैं मानता हूँ की यह बेटियों को उनपर पाबंदी या उनकी इच्छा को दबाने जैसा लगता है, किन्तु यही सही है और यही महती आवश्यकता भी......
मेरे अनुसार :- "हमारे लिये ये बड़े दुःख और शर्म का विषय है की आदिकाल में देवी कहकर पूजी जाने वाली भारतीय नारी आधुनिकता के दिखावे में अपनी सारी मर्यादित सीमाएं और सारी लज्जा को भूलकर, शारीरिक और मानसिक रूप सें असभ्यता की और अग्रसर हो रही हैं। जो भविष्य में हमारी भारतीय गरिमा के लिए अशोभनियें हैं।"
"किसी आधुनिक समाजशास्त्री ने कहा है की - अभी समय है अपनी सभ्यता और मर्यादा को बनाएं रखने और साभने का अपितु आधुनिकता के नाम पर बढ़ती विदेशी सभ्यता से अगर आज के युवक-युवतियां न सम्भले तो वो दिन दूर नहीं जब बेटी, भाई और पिता के और माँ, बेटे के समक्ष फैशन के नाम पर लगभग नग्न भेष में होगी।"
By - Ã.K. Ñandkishor (Ñandan®)
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( B.H.M.S. 1st Year )
S.P.H.Medical college,
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