जिद और जोश - दिव्यांगता बाधा नहीं, अपनी जिद और जज्बे से दे रहे समाज को प्रेरणा। नंदकिशोर पटेल।
दिव्यांगता बाधा नहीं, अपनी जिद और जज्बे से दे रहे समाज को प्रेरणा।
इनके जोश और जज़्बे को सलाम
छतरपुर। नंदकिशोर पटेल।
दिव्यांगता जीवन में बाधा नहीं है इसका एक नजारा शहर में देखने को मिलता है। दिव्यांग ही दिव्यांगों के हुनर को निखार रहे हैं और उन्हें जीवन जीने की कला सीखा रहे हैं।
अनंतराम विश्वकर्मा: अनंतराम विश्वकर्मा जन्म से दृष्टिहीन हैं। लेकिन अपने जोश और जज्बे से ये साबित कर लिया कि दिव्यांगता जीवन मे कोई बाधा नहीं है। अनंतराम जन्म से ही दृष्टिहीन हैं वो देख नहीं सकते लेकिन इसके बाबजूद उन्होंने अपना हौसला बनाएं रखा। अनंतराम को ब्रेललिपि और संगीत के साथ-साथ सितार, हारमोनियम, तबला और बाँसुरी के साथ संगीत के कई उपकरणों को बजाने में महारत हांसिल है। अनंतराम दृष्टिहीन बच्चों को ब्रेरेललि और दिव्यागों को संगीत और संगीत यंत्रों को चलाना सिखा रहे हैं। वे कहते हैं कि दृष्टिहीनता हमें रोक नहीं सकती है, हम जो चाहते हैं वो कर सकते हैं बस मन में कुछ करने की प्रबल इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मैं ब्रेललिपि और संगीत की अपनी कलाओं को बच्चों को सीखकर उन्हें एक नया जीवन देना चाहता हूँ। जिससे वे खुद को समाज से अलग और कमजोर न समझे।
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मुकेश पटेल: बच्चे को आकृती बनवाते हुए। |
मुकेश कुमार पटेल: मुकेश अपने एक एक पैर से दिव्यांग हैं। लेकिन इनके जज्बे के कारण मुकेश ने दिव्यांगता को पीछे छोड़ दिया। मुकेश को क्रिकेट, बैडमिंटन, बॉलीवाल, कैरम और सतरंज जैसी और कई खेल विधाओं में महारत हांसिल है। मुकेश करुणालय प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट प्रभारी हैं। मुकेश बच्चों के खेल के हुनर को निखारने में लगे हैं वे दिव्यांग बच्चों को अलग-अलग खेलों का प्रतिक्षण देते हैं जिससे बच्चे दिव्यांगता को अपनी कमजोरी न समझें। मुकेश कहते हैं कि वे बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार खेल विधाओं में पारंगत बनाकर उन्हें एक समाज में अपनी एक अलग पहचान देना चाहते हैं जिससे ये बच्चे स्वयं को समाज और सामान्य लोगों से अलग न समझे और उनमें स्वयं के प्रति कोई हीन भावना न जागे इसलिए वे दिव्यांग बच्चों को खेल की विधाओं में पारंगत कर रहे हैं।
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सविता पाल: बच्ची को आकर्षक आकृतियों का अभ्यास करते हुए। |
सविता पाल: सविता पाल बचपन से ही मूकबधिर हैं वो बोल नहीं सकती हैं। सविता ने अपने जोश और जज्बे से इस कमी को अपने जीवन में बड़ी बाधा नहीं बनने दिया। सविता मुखबधिर बच्चों को साइन लेंग्वेज सिखा रहीं हैं। जिससे वो सामान्य लोगों को भाषा को समझ सकें और लोगों को अपनी भावनाओं को आसानी से समझा सकें। इससे उनका जीवन यापन सहज और सामान्य हो जाएगा, और ये अच्छे अपना जीवनयापन सामान्य तरीके से कर सकें। सविता ने बताया कि उन्होंने दिल्ली से साइन ऑफ लैंग्वेज की पढ़ाई की है और अब वे अपने इस हुनर से मुखबधिर बच्चों को साइन लेंग्वेज सीखाकर उन्हें समाज में समान स्थान दिलाना चाहती हैं। जिससे कि कोई भी उन्हें दिव्यांगता की भावना से न देखे और बच्चों में खुद के प्रति हीन भावना जगह न हो। बच्चे बड़े होकर सामान्य जीवनयापन कर सकें।
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उमा यादव: करुणालय केयर टेकर, जन्मान्ध उमा को आकृति बनाना सिखाते हुए। |
भारती यादव: करुणालय में 19 वर्षीय भारती यादव को केयर टेकर हैं। भारती बच्चों की देख रेख करेंगी और उन्हें सामान्य जीवन की क्रियाविधि को सिखाएंगी। भारती कहती हैं कि इन बच्चों की सेवा करके मन को अपार शांति का अनुभव होता है। वे इन बच्चों को एक नया जीवन देने का प्रयास करती हैं।
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विमल: हाउस मदर। बच्ची की देख रेख करती माँ। |
विमला: विमला बचपन से ही मुखबधिर हैं वो बोल नहीं सकती हैं। विमला मुखबधिर होते हुए भी खाना बनाने में माहिर हैं। इन्हें खाना बनाने की बहुत सी रेसिपी आती हैं। विमला करुणालय में हाउस मदर का करतीं हैं। ये बच्चों के लिए खाना बनाती हैं और उन्हें भी खाना बनाना सिखाती हैं जिससे वो बड़े होकर घर के कार्यों में भी आत्मनिर्भर बन सकें। विमला को निर्वना फाउंडेशन न 2 साल पहले शरण दी थी और अब उन्हें करुणालय में हाऊस मदर का काम दिया हैं। वहां रहकर विमला बच्चों की माँ बनकर रहेंगी और घर के पूरे काम करेगी और बच्चों को सिखाएंगी।
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उमा कुशवाहा: ढोलक बजाने का अभ्यास करते हुए जन्मान्ध उमा। |
उमा कुशवाहा: करुणालय में अभी हाल उमा कुशवाहा नाम की 8 वर्षीय बच्ची हैं। उमा जन्म से ही दृष्टिहीन है। उमा को साइन लेंग्वेज सिखाई जा रही है। इसके अलावा उमा ढोलक बजाना सीख रही है। उमा बतातीं हैं कि वो अंधी है इस कारण वो दुनियां तो नहीं देख सकती लेकिन सब कुछ महसूस कर सकती हैं। वह जल्दी ही साइन लेंग्वेज द्वारा पढ़ना-लिखना सीख जाएगी और वो ढोलक बजाना सीख रही हैं इसके बाद वह और भी बहुत कुछ सीखेंगी। उमा ने बताया कि वह बड़ी होकर समाज के लिए एक मिशाल देना चाहती हैं। वो बताना चाहती है कि दिव्यांग होना समाज से अलग होना नहीं है। उमा के इस सपने को साकार करने में करुणालय पूर्ण रूप से समर्पित है।
करुणालय
शहर में दिव्यांग बच्चों के लिए एक और पहल हुई है। कुछ दिनों पहले शहर के सागर रोड स्थित बिजावर नाका पास ही दिव्यांग बच्चों के लिए आश्रय गृह का शुभारंभ किया गया था। शहर के समाजसेवियों की पहल पर निर्वना फाउंडेशन ने यह आश्रय गृह खोला। इस आश्रय गृह को करुणालय नाम दिया गया है।
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संजय सिंह: निर्वना फाउंडेशन संस्थापक। |
शहर के समाज सेवी संजय सिंह द्वारा 2 साल पहले अनाथ, दिव्यांग, वृद्ध और समाज द्वारा प्रताड़ित महिलाओं को आश्रय देने और सेवा करने की भावना के चलते निर्वना फाउंडेशन की शुरुआत की गई थी। इसी संस्था ने हाल ही में दिव्यांग बच्चों के लिए करुणालय प्रोजेक्ट चलाया है। करुणालय में 4 से 18 वर्ष तक के 30 दिव्यांग बच्चों को रखा जाएगा। उन्हें रखने, रहने खाने के अलावा पढ़ने के लिए स्कूल भेजा जाएगा। जिसके लिए संस्था द्वारा ही स्कूल ले जाने और लाने की व्यवस्था की जाएगी और उनके साथ देखभाल के लिए करुणालय के कर्मचारी भी साथ स्कूल जाएंगे। इसके बाद करुणालय में उनके लिए विशेष कक्षाएं लगा कर उनके हुनर को निखारा जाएगा। श्री सिंह ने बताया कि इस करुणालय में सभी कर्मचारी दिव्यांग ही रखे गए हैं। जिससे बच्चों को आसानी से सिखाया जा सके। क्योंकि एक दिव्यांग दूसरे दिव्यांग को बच्चों को सिखाएगा तो सीखने में सहज होगा और उनके लिए उनके गुरु प्रेरणा होंगे। जो उन्हें आत्मबल प्रदान करेगा।
संजय सिंह ने बताया कि 2 साल निर्वना फाउंडेशन ने कैम्पस बनाने के लिए शहर से बाहर बसारी गांव के आगे पन्ना रोड पर ही 2 एकड़ जमीन भी खरीदी है जहां निर्वना कैम्पस बनाया जाना है। इस कैंपस का नक्शा तैयार हो गया है। इसमें 4 अलग-अलग वार्ड बनाए जाएंगे जिसमे 300 लोगों को रखा जाएगा। इसमे वृद्धजन, महिलाओं, दिव्यागों और अनाथ बच्चों को अलग-अलग वार्डों में रखा जाएगा।
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दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर |
नंदकिशोर पटेल
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